अनुभूति में
डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
क्रांति
नयी बिसात
बारिश की बूँदें
सन्नाटा
सावधान
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बारिश की बूँदें
धरती के गालों पर
थपकी सी गिरती
बारिश की बूँदें
और –
ईर्ष्या से जलता
घोर कृष्ण वर्ण निर्मम आकाश
रात्रि के पट पर
अपनी ज्वाला को रेखांकित करता हुआ
हवा के केश पकड़कर झिंझोड़ रहा है –
मैं अचम्भित हूँ !
इस कुटिल ईर्ष्या के विपरीत
धरती के हृदय में स्नेह का संचार होते देखकर।
एक नयी भोर के साथ
पृथ्वी के अंक से
प्रस्फुटित हो रही हैं,
नई कोंपलें –
यह आश्वस्त करती हुई
कि आकाश अनंत है
किंतु पृथ्वी के आगे नगण्य;
यह पृथ्वी, यह धरती
माँ है आखिर.....!
१ अगस्त २०२२
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