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अनुभूति में डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी की रचनाएँ

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सन्नाटा
सावधान

 

सन्नाटा

स्कूली बच्चों से भरे हुए
बस का ड्राईवर
कभी स्कूल नहीं गया था,
उसका आक्रोश
दिमाग की पेशियों में पलता,
नसों से उतरता, जब पैरों तक पहुँचा
दब गया ऐक्सिलरेटर –
सामने से आते हुए ट्रक में भी
था एक ड्राईवर
दस दिन से सड़क पर
न ढँग का खाना, न निश्चिंत कोई बिस्तर
बीबी, बाढ़, शहरों के जाम
या कानून के भिखमंगे हाथ
न जाने किस पर था आक्रोश -
दिमाग से उतरता
पहुँच गया पैरों पर
दबा दिया ऐक्सिलरेटर
बस, फिर क्या!
एक जोरदार टक्कर
ज़िंदगी के लिये ज़िंदगी ढोते हुए
दो आक्रोश से भरी ज़िंदगियों ने
खींच दी खड़ी पाई
कुछ देर की चुप्पी... कुछ देर का शोर-
आँसुओं का कुहासा
मुआवज़े का पाँसा
फिर वही दौड़ –
ज़िंदगी पस्त हो गयी है, ज़िंदगी ढूँढ़ते हुए
भगवान भी अब सन्नाटे में है !!

१ अगस्त २०२२

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