अनुभूति में
डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
क्रांति
नयी बिसात
बारिश की बूँदें
सन्नाटा
सावधान
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नयी बिसात
तुमने मुझको दी ज़िंदगी
मैंने प्रश्न-चिह्न उगाये
जीवन तट के घाट-घाट पर
सपनों के झूले टकराये
कहीं मिला सुख चैन, कहीं तो
दुख के साज़ लगे बजने
कहीं कलुष था, अंधकार था
कहीं लगे तारे सजने
क्या पाया, क्या खोया की
आपाधापी में भूल गया
तुम मुझमें हो, मैं तुममें हूँ
हर पल है अपना रूप नया
मैं यहाँ हूँ, मैं वहाँ हूँ
सृष्टि के हर स्पंदन में
चेतन में मैं “मैं मैं” करता
पर, हूँ सजग अवचेतन में
लहरें जब थमने लगती हैं
जब क्षितिज आ साथ मिले
जब जब जीवन नैया डोले
लेती यूँ ही हिचकोले
तब तब मुझको छू लेना तुम
मिल जायेगी नयी राह
मिल जायेगा नया गगन, कोई
मिल जायेगी नयी छाँह
रे पगले विश्राम कर ले
अब क्या दिन, क्या काली रात
शुरू होगा चलना फिर से
फिर फिर बिछेगी नयी बिसात
१ अगस्त २०२२
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