अनुभूति में
डॉ. दिनेश
चमोला शैलेश
की रचनाएँ—
दोहों में-
माँ
कविताओं में-
अनकहा दर्द
एक पहेली है जीवन
खंडहर हुआ अतीत
गंगा के किनारे
जालिम व्यथा
दूधिया रात
धनिया की चिंता
सात समुन्दर पार
पंखुडी
यादें मेरे गाँव की
ये रास्ते
रहस्य
संकलन में-
पिता
की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता
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ये रास्ते
जाने
कहाँ से कहाँ तक भटका हूँ
मैं सदैव
इन रास्तों को पाने की चाह में
बार-बार छुड़ाते रहे हैं ये मुझे
अपनों से ही
मेरी अस्मिता के गवाह है ये रास्ते
इन्होंने दिया है मुझे
अपनों और बेगानों का दर्द
खोने और पाने का अहसास
छलने और छले जाने का रहस्य
इनका सफर तय करते
कितनों ने साथ दिया
और कितनों ने हाथ
परंतु
कब मिला कोई
मेरा मीत फिर दोबारा?
आओ इन पर चलना सीखें -
इन्हें जीना सीखे
जाने
फिर कभी
मिले या न मिले
ये रास्ते
१६ अगस्त २००३ |