अनुभूति में
डॉ. दिनेश
चमोला शैलेश
की रचनाएँ—
दोहों में-
माँ
कविताओं में-
अनकहा दर्द
एक पहेली है जीवन
खंडहर हुआ अतीत
गंगा के किनारे
जालिम व्यथा
दूधिया रात
धनिया की चिंता
सात समुन्दर पार
पंखुडी
यादें मेरे गाँव की
ये रास्ते
रहस्य
संकलन में-
पिता
की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता
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धनिया की चिंता
बार-बार नहीं
केवल महीने-दो महीने में
एक बार करती है
धनिया इंतजार
डाकवान का
जब घर में
नून तेल का कोई
जुगाड नहीं होता,
जब गात की
लत्ता हद से अधिका फट जाती है,
जब पूस की ठंड
संकोच की दहलीज फाँद
अंदर तक घुस जाती है
या फिर
दुधारू गाय-भैस दूध
देना कर देती है एकाएक बंद
धरती पर नहीं उगता
किसी भी प्रकार का अन्न
तब धनिया बहुत बेचैन हो उठती है
जब फटेहाल में
बार-बार
कर्जे की अवधि
बीत जाने की
सूचना देता है कर्जाई
जब दाने-दाने के लिए
मोहताज हो उठता है उसका घर
जब भूख
हिरणों सी छलाँगे भरती है
तब
धनिया को
याद आता है
परदेस गया होरी
जिसका चिठ्ठा तो आया है
लेकिन खर्चा अभी नहीं आया
तब-जब
त्यौहारों के नजदीक हों दिन
खूब सज-धज रहे हों
पास-पडोसियों के बाल-बच्चे
डाकवान की बाट जोहने की
चाह बढ जाती है
धनिया की
उसके बच्चों को देख
जब शेम-शेम करते हैं
गलियों के बच्चे
तो ढँक देता है
धनिया का फूल सा बेटा
अपना नंग-धडंग शरीर
काँच से नहीं
बल्कि गहरी ठंड से
कराह उठती है धनिया
जाने कितने दिन बाद आएगा उसके
परदेस गए पिता का खर्चा
जिस पर टिकी है घर गृहस्थी की
अनेकानेक आकांक्षाएँ
डाकवान की याद आते ही
खर्च के समानांतर
धौंकनी सी चलती है चाहें
कल्पना के कैनवास पर
तैरने लगती हैं
ख्वाबों की मछलियाँ
होती है चिंता
जाने होरी सुखी है दुखी
परदेस में
जिसकी प्रत्याशा में पकता है
यह ख्वाबों का पुलाव
१ फरवरी २००५ |