अनुभूति में
डॉ. दिनेश
चमोला शैलेश
की रचनाएँ—
दोहों में-
माँ
कविताओं में-
अनकहा दर्द
एक पहेली है जीवन
खंडहर हुआ अतीत
गंगा के किनारे
जालिम व्यथा
दूधिया रात
धनिया की चिंता
सात समुन्दर पार
पंखुडी
यादें मेरे गाँव की
ये रास्ते
रहस्य
संकलन में-
पिता
की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता
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गंगा के किनारे
जीवन की
लम्बी यात्रा से
थका-हारा
आज जब लेटा हूँ
पीपल की घनी छाँह में
टहनियों के बीच
चिडिया ने किया है
टी - बी - टुट - टुट
एकाएक
याद आया है
माँ का
वर्षों पूर्व का चेहरा
जब
पहले-पहल
मुझे होना था
दूर मनोरम भूमि से अपनी
माँ अकेले-अकेले आई थी
मुझे अलविदा कहने
गाँव के पीपल तक
किया था
चिडियों ने टुट-टुट-टुट
कुछ कह न सकी थी माँ
बस, मन ही मन
रो दी थी
देकर आशीष
वर्षों बाद समृद्ध गाँव लौटा
तो
माँ नहीं
माँ की स्मृतियाँ थी शेष
ढूँढता था मैं
रेतीले कछार में
माँ की ममतामई
अस्थियों के अवशेष
सुबकते-सिसकते
गंगा के किनारे
१६ अगस्त २००३ |