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अनुभूति में डॉ. दिनेश चमोला शैलेश
की रचनाएँ—

दोहों में-
माँ
कविताओं में-
अनकहा दर्द
एक पहेली है जीवन
खंडहर हुआ अतीत
गंगा के किनारे
जालिम व्यथा
दूधिया रात
धनिया की चिंता
सात समुन्दर पार
पंखुडी
यादें मेरे गाँव की
ये रास्ते
रहस्य

संकलन में-
पिता की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता

 

एक पहेली है जीवन

तैरा करते हैं
पारदर्शी सायों से
स्मृति बिम्ब
मेरे उर्वर जीवन फलक पर
जीवन
जो फैलता जाता है
शीशे पर पड़े
किसी तरल पदार्थ सा
जीवन उनका भी होता है
जो विचरा करते हैं स्वच्छन्द
सागर के गहरे पानी में
या फिर
फैले नीले आकाश में
और उनका भी
जा बंद रहते हैं निरन्तर
किसी शीशे के जार में
परिसीमित और घुटे से
कभी-कभी
महसूसता हूँ मैं
कि हो गया हूँ बंद
मैं भी
संसार के जार में
उन्हीं बंद मछलियों की तरह
जिन्हें करना पड़ता है बहुत कुछ
अपनी इच्छाओं के विरूद्ध
और जीना पडता है
नारकीय जीवन
मैं जैसे ही
सोचने लगता हूँ यह सब
तो आँखों सामने
घिर आती है रात!
एकाएक जागता हूँ
तो देखता हूँ
जार में तैरती है मछलियाँ
चुपके-चुपके
एक दूसरे से कहती
एक पहेली है जीवन
जिसमें
सुलझा नहीं जाता
उलझना होता है
बार-बार
हमारी ही तरह

१६ अगस्त २००३

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