अनुभूति में
संजय भारद्वाज की
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छह क्रौंच कविताएँ
१
क्रौंच के वध से
उपजे शब्द
कविता होंगे तुम्हारे लिए
मेरे लिए तो
विषबुझे तीर से लहुलुहान
छटपटाते क्रौंच का आर्तनाद ही
शाश्वत कविता है
सुन सको तो सुनो
और पढ़ सको तो पढ़ो
मेरा आर्तनाद!
२
तुम नहीं सुन सकोगे
रक्तरंजित क्रौंच की
पीड़ा के स्वर
ना ही
तुम तक पहुँचेगा
शिकार होने का
खतरे उठाए
अपनी जगह
स्थिर बैठे
युगल के जीवित बचे
क्रौंच का
हृदय चीरता विलाप
कविता के सूक्ष्म धागे
तीर और कमान से
नहीं बुने जाते बहेलिए!
३
वध नहीं रचता कविता
वध तो रचता है
निर्मम शब्द
शब्द-
युद्ध के पक्ष में
हिंसा के पक्ष में
शोषण और
वीभत्स
विलाप के पक्ष में
कविता तो
उर्वरा माटी में
सद्भाव के फूल खिलाती है
सदाशयता के
कबूतर उड़ाती है
वध में
कविता ढूँढ़नेवालों!
पहले झेलो
बहेलिए का तीर
अपनी छाती पर
उस रूधिर को रोकने
दौड़ेंगे जो हाथ
वे हाथ
कविता के होंगे
तुम्हारी पीड़ा की
समानुभूति में
बहेंगी जो आँखें
वे आँखें कविता की होंगी
जो कर गुजरेगी कुछ ऐसा
जहॉं जीने के लिए
आखेट की
जरूरत ही न रह जाए
वह समूची
कविता होगी
सुनो मित्रो!
आओ साथ बैठें
और रचें कविता!
४
तीर की नोक
और क्रौंच की नाभि में
नहीं होती कविता
चीत्कार और
हाहाकार में भी
नहीं होती कविता
अपने ही भीतर
उमगती है कविता
अपनी ही आँख में
बसती है कविता
दृष्टि और स्पंदन की
अनुभूति होती है कविता
मनन-मंथन की अंतर्स्रावी
अभिव्यक्ति होती है कविता!
५
कई दिनों तक
प्रयोगशाला में
अनगिनत प्रयोगों की
भेंट चढ़ा
उस क्रौंच का शव
जिससे उपजा था
पहला गान
शरीर में नहीं मिले
ऐसे तत्व
जिनसे सुलझ पाता
गान का रहस्य
मस्तिष्क का आकार
कुछेक को
किंचित बड़ा लगा
तो कुछ को
कंठ में मिठास के
विशिष्ट रस का
स्राव मिला
वैज्ञानिकों के
चंगुल से निकला
बचा-खुचा लोथड़ा
लिखने-पढ़ने
की जुगत में बैठे
जुगाड़ुओं के
हत्थे चढ़ गया
जिसने जो हिस्सा झपटा
अपने-अपने तरीके से
चबाया
घोला
पीसा
और निगल गया
कविता हथियाने की
सारी कोशिश
नाकाम होती रही
उधर फुनगी पर बैठे
क्रौंच के जीवनसाथी
की आँखों से
कविता निरंतर प्रवाहित होती रही।
६
मेरी क्रौंच कविताओं
से प्रभावित
लिखत-पढ़त
के नाम पर
बौराने वाले
नव सृजन की
जुगाड़ करेंगे
बहेलिए को
क्रौंच कथा का
नायक सिद्ध कर
अपवाद को
परंपरा बनाने का
भरसक यत्न करेंगे
साहित्य के आखेटिओं!
कोख के बिना
बीजारोहण नहीं होता
सहृदयता के अभाव में
कविता का जन्म नहीं होता।
१ जून २०१६
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