अनुभूति में
संजय भारद्वाज की
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चाँद का आँचल
फलत:
बोधिवृक्ष
संजय दृष्टि |
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चाँद का आँचल
गैर घरों में
झाड़ू-पोंछा करती
बच्चों की फीस भरती,
परायी किचन में
चपाती सेकती
अपनी रसोई चलाती,
जुआरी पति की
भद्दी गालियाँ सुनती,
शराबी मर्द के
लात- घूँसे खाती,
हर रात बलत्कृत होती,
फिर भी
करवा चौथ का व्रत करती
काश! चाँद औरत होता!
तो-
इन बदनसीब कालिमाओं
के जीवन में
थोड़ी चाँदनी होती।
१० नवंबर २००८
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