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पोटली
घास-फूस के मखमली रास्ते से गुज़र रही हूँ
सुदामा-सा तंदुल की छोटी पोटली लिए
जिसमें बँधे हैं—
जीवन के कच्चे-पक्के अनुभवों के बीज
इच्छाओं के अनोखे रंगों में सने सपने
अतीत के कुछ कठोर निर्णय और निहोरे
कान के बारीक कोनों में
फुसफुसाते भौंरे से दादी के बोल
ढोलकी के बजने की धुन
और दुल्हन में तब्दील होती गुड़िया
आँगन के मुंडेर पर घोंसला बनाए गोरैया
(नन्हीं आँखों से बूँदें टपकाते हुए,
देखते हुए देहरी के पार)
द्वार पर नीम के सघन पेड़ से लटकते झूले की यादें
साथ ही माँ से
गलबहियाँ किए फूट-फूट कर रोने की ध्वनियाँ
और बाबुल के स्नेह की करुण गठरियाँ
उसी के संग भाई के विह्वल आँखों की लाल पुतलियाँ
सब कुछ जब्त हैं
दिल के एक पोटलीनुमा घर में...।
१३ मई २०१३
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