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अक्सर
हम अक्सर
जिन मुद्दों से दूर भागते हैं
वही मुद्दे, भस्मासुर की तरह
दौड़ा-दौड़ाकर कर हमारा पीछा करते हैं
हमें मजबूर कर देते हैं
उसी के परिधि में घूमने को
समाज, देश, दुनिया
और जीवन के सन्दर्भ में
युगों-युगों से हमारे मुख्य हिस्से हैं
खेतों के डाँड पर बैठ
नील गगन को निहारना
सब्ज़ी से
लदे-फदे खेतों से मोथे को चुनना
वहीं बैंगन की डालियों में लगे
गुलाब के फूल जैसे
लटकते काँटों का चुभना
पतझड़ का एहसास कराते परवल से मिलना
और उन सबके बीच
दुनिया के मुद्दों पर उलझना
एक चक्र के भीतर घूमता हुआ
मालूम पड़ता है
१३ मई २०१३
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