अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रोली शंकर की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
कैद
मछलियाँ
वो सिलती बटुए
हम स्वतंत्रता में
ये स्त्रियाँ
 

 

वो सिलती बटुए

वो सिलती बटुए
लाल पीले नारंगी
दबके से सजे
मोती में उलझते
तारों की चमक लिए
चम-चम, चम-चम
बुनती थी सपने
लाड़ो की शादी के
सँजोने को सिक्के
खन खन, खन खन।

कुछ कम था शायद
सिक्कों का खनकना
या उसका शिद्दत से सिलना
बहुत मायूस होतीं रातें
जब गिनने को
चाहतें बहुत थीं और सिक्के कम!
हर सुबह की उम्मीद में
सो जाती रात
और बाजर बीच गिने जाते रहे
जगे सिक्के
अनगिनत सपने खरीदने के लिये।

१ दिसंबर २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter