अनुभूति में
रोली शंकर की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
कैद
मछलियाँ
वो सिलती बटुए
हम स्वतंत्रता में
ये स्त्रियाँ
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वो सिलती बटुए
वो सिलती बटुए
लाल पीले नारंगी
दबके से सजे
मोती में उलझते
तारों की चमक लिए
चम-चम, चम-चम
बुनती थी सपने
लाड़ो की शादी के
सँजोने को सिक्के
खन खन, खन खन।
कुछ कम था शायद
सिक्कों का खनकना
या उसका शिद्दत से सिलना
बहुत मायूस होतीं रातें
जब गिनने को
चाहतें बहुत थीं और सिक्के कम!
हर सुबह की उम्मीद में
सो जाती रात
और बाजर बीच गिने जाते रहे
जगे सिक्के
अनगिनत सपने खरीदने के लिये।
१ दिसंबर २०१८
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