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अनुभूति में रोली शंकर की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
कैद
मछलियाँ
वो सिलती बटुए
हम स्वतंत्रता में
ये स्त्रियाँ
 

 

कैद

मुझें कैद हो जाना चाहिये
और तुम्हें मेरी कैद से आज़ाद!
फिर भी मैं जानता हूँ
तुम दरवाजे के पास ही
मेरा करोगी इंतज़ार।
मेरी भूख पर रखोगी अपनी रोटियाँ
मेरी पेशानी से पोंछोगी अवसाद की बेड़ियाँ।
मैं जानता हूँ मैं छलता हूँ तुम्हें बार बार
और हर बार छले जाने से तुम करती हो इंकार।
मैं जान गया हूँ तुम्हारा पूरा सत्य।
पर हे अर्धांगिनी!
क्या तुम मेरा अर्धसत्य भी जान पाओगी?

१ दिसंबर २०१८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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