अनुभूति में
रोली शंकर की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
कैद
मछलियाँ
वो सिलती बटुए
हम स्वतंत्रता में
ये स्त्रियाँ
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मछलियाँ
मछलियाँ तैरतीं
काँच की दीवार में
रंगीन पानी और सीमित हवा के साथ।
अपनी रंगीनियों के दम्भ में
भूल बैठीं समुद्र की विशालता!
चिड़ियाँ उड़तीं
उन्मुक्त आकाश में
मनभर हवा
चुगने पसन्द के दाने
कहीं भी किसी दीवार के पार!
मछलियों को दया नहीं आती
चिडियों पर
तब भी चिड़ियाँ दुख से भर जातीं
निरीह मछलियों को देखकर
कितनी सीमित कितनी संकुचित!
१ दिसंबर २०१८
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