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अनुभूति में रवीन्द्र बतरा की
कविताएँ-

छंदमुक्त में-
ओ मेरे अफसानों के नायक
क्यों अच्छी लगती है
जब कोई रास्ता न मिले
जिस्मों की कैद में
तुम्हारी सरकार
मौत

  मौत

तुम एक बार क्यों नही आती!
ठहरे हुए तालाब में
जमी हुई काई की तरह
ठहरी है
हमारे जिस्म में मौत!
एक जिंद़गी में
हज़ार तरह से आती है
और चुननी पड़ती है
खुद अपनी मौत
अक्सर
वह हमारे चुने गए तरीके से
अलग तरीके से आती है!
मौत
तुम एक बार क्यों नही आती
सनसनाती
डराती
कितनी वजहों से आती
मौत
तुम एक बार क्यों नही आती!
एक वजह होती कोई
गर्व की
ठीठकी हुई
जिसकी वजह से हम तुम्हें गले लगाते
मौत
तुम सिऱ्फ गर्व होती
या तुम लड़ते हुए आती
काश! तुम भागते हुए
पीठ पर गोली न चलाती!
१६ दिसंबर २००५

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