अनुभूति में
रवीन्द्र बतरा की
कविताएँ-
छंदमुक्त में-
ओ मेरे अफसानों के नायक
क्यों अच्छी लगती है
जब कोई रास्ता न मिले
जिस्मों की कैद में
तुम्हारी सरकार
मौत
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जब कोई रास्ता न मिले
बहुत बार
जब कोई रास्ता न मिले कहीं
विचार भटक रहे हों दिलों-दिमाग में
ज़रूरत होती है अपने अंदर झांकने की
यह तय है कि
हर समस्या
अपने समाधान के साथ पैदा होती है
ऐसे में
जब चल रही हों काली आंधियाँ
और अंधेरा हमें डराने लगे
ज़रूरत होती है भरोसा करने की
अपने आप पर
जिस दिन आप खड़े होते हैं
मज़बूती से धरती पर ऐड़ी जमा
आसमान आपकी बाहों में होता है और
चेहरे पर जहान भर का सुकून
लेकिन इससे पहले ज़रूरी है
एक दूसरे का हाथ थामना
और आंधियों के सामने
चट्टान की तरह अड़ जाना!
१६ दिसंबर २००५
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