एक और साल
लो बीत चला एक और साल
अपनों की प्रीत निभाता-सा
कुछ चमक–दमक बिखराता-सा
कुछ बारूदों में उड़ता-सा
कुछ गलियारों में कुढ़ता-सा
हम पात-पात वह डाल-डाल
लो बीत चला एक और साल
कुछ नारों में खोया-खोया
कुछ दुर्घटनाओं में रोया
कुछ गुमसुम और उदास-सा
दो पल हँसने को प्यासा-सा
थोड़ी खुशियाँ ज़्यादा मलाल
लो बीत चला एक और साल
भूकंपों में घबराया-सा
कुछ बेसुध लुटा लुटाया-सा
घटता ग़रीब के दामन-सा
फटता आकाश दावानल-सा
कुछ फूल बिछा कुछ दीप बाल
लो बीत चला एक और साल
कुछ शहर-शहर चिल्लाता-सा
कुछ गाँव-गाँव में गाता-सा
कुछ कहता कुछ समझाता-सा
अपनी बेबसी बताता-सा
भीगी आँखें हिलता रूमाल
लो बीत चला एक और साल
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