बारिश बारिश नभ
उतर रही थी शाम पहाड़ों से
बादल की बाहों में बाहें डाले
खिली-खिली-सी।
साथ-साथ थे झरने
उनके बहुरंगी वस्त्र सँभाले
धीरे-धीरे
आसमान से
धरती पर पग रखते
अपने श्वेत दुकूलों में
झर-झर लहराते।
रंग घनेरे
हँसी बिखेरे
फूल बिछे थे राहों में
हरी वसुंधरा गले मिली थी
आसमान से
लंबी तनहाई टूटी थी
बारिश बारिश नभ रोया था
धरती शबनम शबनम भीगी थी।