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कोटि कोटि दीप जले
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जितने तारे आसमान में
जन जितने इस जहान में
उतने अरमान फलें
कोटि कोटि दीप जलें
शुभता फैलाने को
तिमिर सब गलाने को
थकें नहीं
रुकें नहीं
आगे पग सदा बढ़ें
कोटि कोटि दीप जलें
अँधकार गहरा हो
मंज़िल पर पहरा हो
ज्योति जले
राह मिले
उत्सव के द्वार खुलें
कोटि कोटि दीप जलें
हर मन एक मंदिर हो
शांति सदा स्थिर हो
सुख दुख
आएँ जाएँ
मार्ग नहीं विचलें
कोटि कोटि दीप जलें
-अश्विन गांधी
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दिया
दिया दिया दिया
मुठ्ठी भर माटी,
चुटकी भर स्नेह
जगमग जग किया।
दिया और बाती
स्नेह रंग राँची
औ' मन उजास पाती
गई रात बाँची।
चौक-चौक चंदन
स्वस्तिक और दिया,
कलाई में कलावा
हर्ष-हर्ष हिया।
सोने के कंगन
माटी का दिया,
द्वारे पर तोरण
चौबारे पिया।
खील और बताशे
घर घर में बाँटे,
हर मन दीवाली
हर मुंडेर दिया।
-पूर्णिमा वर्मन
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