अनुभूति में
प्रिया सैनी की रचनाएँ-
कविताओं में-
अहं की मीनार से
कुछ भीगा भीगा
जाओ तुम्हें आज़ाद किया
जाने क्यों चुप हूँ
तीन छोटी कविताएँ
तेरे प्रेम का चंदन
मेरा गुलमोहर उदास है
मैं पिघलता लावा नहीं
शाम से ढली हुई
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जाओ तुम्हें आज़ाद किया
जाओ तुम्हें आज़ाद किया
तन से, मन से
अतृप्त प्राणों से
तने हुए तुम्हारे ही
शब्द-वाणों से
झूठे-सच्चे तानों से
जाओ! तुम्हें मुक्त किया
मन की अभंग उमंगों से
उठती गिरती तरंगों से
रंगों से और अंगों से
जाओ! तुम्हें युक्त किया
अपनों से बेगानों से
विरहा की जलती तानों से
रंग बदलती रातों से
जाओ! तुम्हें सिक्त किया
फूलों से कुछ खारों से
होठों के जलते अंगारों से
शब्दों की मौन पुकारों से
जाओ! तुम्हें रिक्त किया
आगोश के जज़ीरे से
बाहों के मस्त मंजीरे से
मदभरे अहोश तीरे से
लो तुम आज़ाद हो
सर्वोत्तम हो, सिरताज हो!
मेरी सुनसान रातों के
तुम्हीं एकमात्र साज हो!
चलती-बदलती दुनिया में
तुम्हीं अंतिम साध हो!
१६ फरवरी २००६ |