अनुभूति में
पृथ्वीपाल रैणा
की रचनाएँ-
1
छंदमुक्त में-
अंतर्मुखी अँधेरे बहिर्मुखी उजाले
एक खिलौना मैं
दिल
मेरी धरती मेरा आसमान
साँसों के समंदर में
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मेरी धरती मेरा आसमान
कितना भी मुश्किल हो चाहे
यह तो करना ही होता है
'काल' के कर्कश चंगुल से तो
छूट निकलना ही होता है।
पल भर पहले गुजऱ गया जो
बीत गया वह जैसा भी था
कल जो आयेगा
मत सोचो कैसा होगा।
अपना तो न वह था
जो कल बीत गया
और न वह होगा
जो कल आयेगा
मेरे कदमों के जितनी है
मेरी धरती
मेरी आँखों भर है
मेरा आसमान।
एक कदम से लम्बी
कोई राह नहीं
एक जन्म से लम्बा
रिश्ता क्या होगा?
सागर की गहराई हो
या आसमान की ऊँचाई
भीतर के विस्तार से
फिर भी बड़ी नहीं।
१ जुलाई २०१६ |