अनुभूति में
पृथ्वीपाल रैणा
की रचनाएँ-
1
छंदमुक्त में-
अंतर्मुखी अँधेरे बहिर्मुखी उजाले
एक खिलौना मैं
दिल
मेरी धरती मेरा आसमान
साँसों के समंदर में
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दिल
हर साज़
बिखरता है
हर रंग
उखड़ता है
जीवन मिट जाता है
इच्छाएँ नहीं मरतीं
आँखों को
दुनिया के रंगों से मुहब्बत है
कानों का
दुनिया के सुरताल से रिश्ता है
खुश्बू हमें ले जाती है
अपनों से बहुत दूर
पैरों से सफ़र करके
इंसान भटक सकता है
यह हाथ भी
अपनों में और गैरों में
फर्क रखते हैं
यह दिल है जो हर हाल में
चुपचाप धड़कता है
अपने में पराए में
ऊँचे और नीचे में
गोरे और काले में
कोई भेद नहीं करता
मेरे साथ जन्मता है
मेरे साथ ही मरता है
१ जुलाई २०१६ |