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बोझ
जब भी मिलता है
कोई तोहफा
किसी कंपनी से बापू को
बापू उसे रख देते हैं
सहेज कर
छुटकी के दहेज के लिए
जब भी मिलती हैं
साड़ियाँ, नकदी, जेवर
रिश्तेदारों से माँ को
वो भी रख देती है
सहेज कर
छुटकी के दहेज के लिए
माँ और बापू का
ये प्रेम का ढेर देखकर
कहाँ कुछ बोल पाएगी छुटकी
बाँधी जाएगी जिस भी खूँटे से
चुपचाप बँध जाएगी छुटकी
दहेज की माँग से पहले ही
बटोरे हुए दहेज के बोझ से
अपने सारे अरमानों को
दल जाएगी छुटकी ।
२४ फरवरी २०१४ |