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अनुभूति में नेहा शरद की रचनाएँ -

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खेल
जिंदगी का हिसाब
तीन परिस्थितियाँ
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  जिंदगी का हिसाब

बँधा बँधाया सा हिसाब है ज़िन्दगी का,
मन मिले ना मिले, रोटी के लिए
यह तन तो देना होगा,
इच्छा हो या ना हो,
साथ सोना मजबूरी है,
यहाँ से निकलूँगी तो पता नहीं
फिर कहा जाऊँ...
हर नए दिन के डर से,
हर रात की बात माननी है,
क्या करू मेरा धंधा
ऐसे ही चलता है...

बँधा बँधाया सा हिसाब है ज़िन्दगी का,
मन मिले ना मिले, हर नए दिन के डर से,
हर रात की बात माननी है,
यहाँ से निकलू तो पता नहीं फिर कहाँ जाऊँ
इच्छा हो या ना हो यह सब मैं करुँगी
संग डोर जो बँधी है,
सुनूँगी, सहूँगी और वहीं पर रहूँगी..
क्या करू, बेमन खूँटे से बँधी ब्याहता जो हूँ।

१५ नवंबर २०१०
 

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