अनुभूति में
नेहा शरद की रचनाएँ -
छंदमुक्त में--
खेल
जिंदगी का हिसाब
तीन परिस्थितियाँ
हाँ यह ठीक है
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तीन परिस्थितियाँ
१
हाँ, यह सच है,
आँखों पर पट्टी बाँध कर ही
अपने पति को देखा था मैंने,
किन्तु विवाह पूर्व ,
किसने बाँधी पट्टी,
मेरी परिस्थितियों पर...
२
माँ, पहले भी तुमसे कहा
जो कुछ भी मैने सहा
कई दफे माँगा ,
आसरा तेरी गोद का,
पर आज तो अति हो गयी,
और तू फटी
मुझे फिर 'गति' मिल गई
३
यह मृग नयन, यह कंचन देह,
बदली से मुख पर केश सघन,
हृदय में बसा एक प्रेम तुम्हारा,
गोद मैं बेटा भारत हमारा
हा, दुष्यंत !
रहा मुझे फिर भी एक मुद्रिका
राज-चिन्ह का सहारा...
१५ नवंबर २०१० |