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अनुभूति में नेहा शरद की रचनाएँ -

छंदमुक्त में--
खेल
जिंदगी का हिसाब
तीन परिस्थितियाँ
हाँ यह ठीक है


  हाँ यह ठीक है

हाँ, यह ठीक है कि यह हवा है जो बहती है,
बिना कोई नागा किये हुए
सूरज भी सुबह आता है,
शाम ढले, घर लौट जाता है
खुला आसमान भी है, हरा भरा जहाँ भी है..

फिर भी ,
तू मेरे बैंक का क़र्ज़ माफ़ करवा दे
मेरे लिए एक अच्छा सा मकान दिलवा दे.
अपने हाथों से जो गुत्थियाँ उलझाई है मैंने
उन्हें सुलझा दे ...
फिर में मानू
तू है तेरा भी वजूद है

१५ नवंबर २०१०

 

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