अनुभूति में
नरेश सक्सेना की रचनाएँ-
गीतों में-
आज साँझ मन टूटे
फूले फूल बबूल
बैठे हैं दो
टीले
साँकल खनकाएगा
कौन
सूनी संझा झाँके
चाँद
छंदमुक्त में-
ईटें
उसे ले गए
कांक्रीट
कविताएँ
देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा
क्षणिकाओं में--
आघात
कुछ लोग
सीढ़ी
दरार
पानी
दीमकें |
|
उसे ले गए
अरे कोई देखो
मेरे आँगन में कट कर
गिरा मेरा नीम
गिरा मेरी सखियों का झूलना
बेटे का पलना गिरा
गिरी उसकी चिड़िया
देखो उड़ा उनका शोर
देखो एक घोंसला गिरा-
देखो वे आरा ले आए ले आए कुल्हाड़ी
और रस्सा ले आए
उसे बाँधने
देखो कैसे काँपी उसकी छाया
उसकी पत्तियों की छाया
जिनसे घाव मैंने पूरे
देखो कैसे कटी उसकी छाल
उसकी छाल में धँसी कुल्हाड़ी की धार
मेरे गीतों में धँसी मनौती में धँसी
मेरे घावों में धँसी
कुल्हाड़ी की धार
बेटे ने गिन लिए रुपए
मेरे बेटे ने
देखो उसके बाबा ने कर लिया हिसाब
उसे ले गए
जैसे कोई ले जाए लावारिस लाश
घसीट कर
ऐसे उसे ले गए
ले गए आँगन की धूप छाँह
सुबह शाम
चिड़ियों का शोर
ले गए ऋतुएँ
अबतक का संग साथ
सुख दुख सब जीवन-ले गए। |