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अनुभूति में नरेश सक्सेना की रचनाएँ-

गीतों में-
आज साँझ मन टूटे

फूले फूल बबूल
बैठे हैं दो टीले
साँकल खनकाएगा कौन
सूनी संझा झाँके चाँद

छंदमुक्त में-
ईटें
उसे ले गए
कांक्रीट
कविताएँ
देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा

क्षणिकाओं में--
आघात
कुछ लोग
सीढ़ी
दरार
पानी
दीमकें

  देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा

लाल रोशनी न होने का अंधेरा
नीली रोशनी न होने के अंधेरे से
अलग होता है
इसी तरह अंधेरा
अंधेरे से अलग होता है।

अंधेरे को दोस्त बना लेना आसान है
उसे अपने पक्ष में भी किया जा सकता है
सिर्फ़ उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भरोसा रोशनी पर तो हरगिज़ नहीं
हरी चीज़े लाल रोशनी में
काली नज़र आती हैं
दरअसल चीज़ें
खुद कुछ कम शातिर नहीं होतीं
वे उन रंगों की नहीं दिखतीं
जिन्हें सोख लेती हैं
बल्कि उन रंगों की दिखाई देती हैं
जिन्हें लौटा रही होती हैं
वे हमेशा
अपनी अस्वीकृति के रंग ही दिखाती हैं

औरों की क्या कहूँ
मेरी बायीं आँख ही देखती है कुछ और
दायीं कुछ और देखती है
बायाँ पाँव जाता है कहीं और
दायाँ, कहीं और जाता है
पास आओ दोस्तों अलग करें
सन्नाटे को सन्नाटे से
अंधेरे को अंधेरे से और
नरेश को नरेश से।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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