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अनुभूति में नरेश सक्सेना की रचनाएँ-

गीतों में-
आज साँझ मन टूटे

फूले फूल बबूल
बैठे हैं दो टीले
साँकल खनकाएगा कौन
सूनी संझा झाँके चाँद

छंदमुक्त में-
ईटें
उसे ले गए
कांक्रीट
कविताएँ
देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा

क्षणिकाओं में--
आघात
कुछ लोग
सीढ़ी
दरार
पानी
दीमकें

  कांक्रीट

आपस में सट कर फूटी कलियाँ
एक दूसरे के खिलने के लिए जगह छोड़ देती हैं
जगह छोड़ देती हैं गिटि्टयाँ
आपस में चाहें जितना सटें
अपने बीच अपने बराबर जगह
ख़ाली छोड़ देती हैं
जिसमें भरी जाती है रेत
और रेत के कण भी
एक दूसरे को चाहें जितना भींचें
जितनी जगह खुद घेरते हैं
उतनी जगह अपने बीच ख़ाली छोड़ देते हैं।
इसमें भरी जाती है सीमेंट
सीमेंट
कितनी महीन
और आपस में सटी हुई
लेकिन उसमें भी होती हैं ख़ाली जगहें
जिसमें समाता है पानी
और पानी में, खैर छोड़िए
इस तरह कथा कंक्रीट की बताती है
रिश्तों की ताकत अपने बीच
ख़ाली जगह छोड़ने की अहमियत के बारे में।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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