अनुभूति में
मनोज चौहान
की रचनाएँ
छंदमुक्त
में-
तोहमतें
बड़ी अम्मा
बस्ती का जीवन
मंजिलों की राहें
मेरी बेटी |
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तोहमतें
मेरे
अहसासों को भी अल्फाजों का नाम देकर
मुझपर तौहमतें लगाने लगे हैं लोग
उजाड़ दिया था कभी खुद ही जिस बस्ती को
फिर वहीँ पर घर बनाने लगे हैं लोग
खुद के दुःख से कोई भी दुखी नहीं है आज
फिर क्यों दूसरों के सुख से भी
दुखी रहने लगे हैं लोग
जख्मी कर गए थे कभी
खुद ही जिस साहिल को
आज वहीँ पर मरहम लिए
नज़र आने लगे हैं लोग
समुन्दर का हुनर तो जानता है हर कोई
क्यों फिर पोखर बनकर भी इतराने लगे हैं लोग
महसूस जो ना कभी कर पाए
छलनी हुए पाँवों का दर्द
चन्द फासले जो तय कर गया वो शख्स
तो फिर क्यों हैरानी दिखाने लगे हैं लोग
दुनियादारी के स्वांग से परे
जो जीना चाहे अपने ही तरीके से
स्वाभिमानी उस शख्स को
अब मगरूर कहने लगे हैं लोग
अजीब चलन देखा दुनिया का यारो
जो दिखे कि है परेशाँ कोई
तो सुकून में रहते हैं लोग
और जो लगे कि है कोई सुकून में
न जाने फिर क्यों खुद का ही
सुकून गँवाने लगे हैं लोग
२७
अप्रैल २०१५
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