अनुभूति में
मनोज चौहान
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मेरी बेटी |
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मेरी बेटी
मेरी बेटी अब हो गई है
चार साल की
स्कूल भी जाने लगी है वो
करने लगी है बातें ऐसी
कि जैसे सबकुछ पता है उसे
कभी मेरे बालों में
करने लगती है कंघी
और फिर हेयर बैंड उतार कर
अपने बालों से
पहना देती है मुझे
हँसती है फिर खिलखिलाकर
और कहती है कि देखो
पापा लड़की बन गए
कभी-कभार गुस्सा होकर
डांटने लग पड़ी है मुझे वो
फिर मुँह बनाकर मेरी ही नकल
उतारने लग जाती है वो
मेरे उदास रहने पर भी
अक्सर हँसाने लगी है वो
रूठ बैठती है कभी
तो चली जाती है
दुसरे कमरे में
बैठ जाती है सिर नीचा करके
फिर बीच-बीच में सिर उठाकर
देखती है कि
क्या आया है कोई
उसे मनाने के लिए
उसकी ये सब हरकतें,
लुभा लेती हैं दिल को
दिनभर की थकान
और दुनियादारी का बोझ
सब कुछ जैसे भूल जाता हूँ मैं
एक रोज उसकी किसी गलती पर
थप्पड़ लगा दिया मैंने
सुनकर उसका रुदन
विचलित हुआ मन बहुत उस रोज
फिर सोचा कि
परवरिश के नाम पर
क्या इतनी कठोरता
उचित है?
महज चार साल की
ही तो है वो
पश्चाताप हुआ मुझे
फिर मेरी भूल का
मैंने बुलाया उसे अपने पास
और कहा बेटा सॉरी
कोई बात नहीं पापा
अब नहीं करूँगी
फिर ऐसी गलती
उसके चेहरे के वो निर्दोष भाव
अहसास दिला गए मुझे
कि चाहता है वो बालमन भी
धीरे-धीरे समझदार और परिपक्व होना
२७ अप्रैल २०१५
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