अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोज चौहान की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
तोहमतें
बड़ी अम्मा
बस्ती का जीवन
मंजिलों की राहें
मेरी बेटी

 

बड़ी अम्मा

सुबह उठते ही आज भी कानो में
गूँजती है मानो वही ममतामयी आवाज
उठ जा बेटा सुबह हो गई

आलस्य के बशीभूत अनमने मन से
झुँझला भी उठता था मैं कभी-कभार
मगर नहीं भूलती थी रोज सुबह
मुझे नींद से जगाना बड़ी अम्मा

बचपन में दादी को पहली बार
कब पुकारा होगा बड़ी अम्मा
मुझे याद नहीं
मगर अक्सर उनका चिंतित रहना मेरे लिए
मैं महसूस करता रहा हर बार

बक्त के फेर में धुँधला चुकी उन आँखों में
वात्सल्य की रौशनी कभी कम नहीं हुई
एक हलकी सी आहट जगा देती थी उन्हें
जब कभी मैं देर से घर लौटता था रात को
मकान के घर होने का अहसास रहता था हमेशा
मगर आज घर महज मकान ही रह गया है

उनके उस खाली पड़े कमरे का सन्नाटा
हर बार गहरा देता है अन्दर के जख्मों को
जानता हूँ कि जीवन की ही तरह
एक सच है मौत भी
मगर ना जाने क्यों दिल आज भी
मानना ही नहीं चाहता
कि अब नहीं रही हैं बड़ी अम्मा

२७ अप्रैल २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter