अनुभूति में
मनोज चौहान
की रचनाएँ
छंदमुक्त
में-
तोहमतें
बड़ी अम्मा
बस्ती का जीवन
मंजिलों की राहें
मेरी बेटी |
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मंजिलों की
राहें
आसान नहीं होती हैं
मंजिलों की राहें
कदम-कदम का संघर्ष
करता जाता है निर्माण
एक नयी सीढ़ी का
हर शख्स पास होकर भी
अक्सर दूर हो जाता है
रिश्तों की नाज़ुक डोर में
पद जाती है गाँठें
हो जाता है तन्हा आदमी
उलझ कर कालचक्र के भँवर में
महज फूलों की चाह में
ना चलना इन राहों पर ऐ दोस्त
मंजिलों की राहों पर
मिलते हैं काँटे भी
कदमों की भीड़ में
लड़खड़ा उठता है आत्मविश्वास भी
धूमिल हो चलती हैं आशाएँ
सँभलना पड़ता है आदमी को
बार-बार गिरकर भी
दूर पश्चिम के क्षितिज पर
डूबता हुआ सूरज
कर जाता है आंदोलित अंतर्मन को
और दे जाता है आगाज
एक नयी सुबह के लिए
२७ अप्रैल २०१५
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