अनुभूति में
कवि कुलवंत सिंह की रचनाएँ-
अंजुमन में-
तप कर ग़मों की आग में
हाइकु में-
सत्रह हाइकु
गीतों में
छेड़ो तराने
प्रकृति
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
प्रणय का गीत
वंदना |
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प्रकृति
सतरंगी परिधान पहन कर
आच्छादित है मेघ गगन,
प्रकृति छटा बिखरी रूपहली
चहक रहे द्रवित हो गगन।
कन-कन बरखा की बूँदे
वसुधा आँचल भिगो रही,
किरनें छन-छन कर आती
धरा चुनर है सँजो रही।
सरसिज दल तलैया में
झूम-झूम बल खा रहे,
किसलय, कोंपल, कुसुम कुंज के
समीर सुगंधित कर रहे।
हर लता, हर डाली बहकी
मलयानिल संग ताल मिलाए,
मधुरिम कोकिल की बोली
सरगम सरिता सुर सजाए।
कल-कल करती तरंगिणी
उज्ज्वल तरल धार सँवरते,
जल-कण-बिंदु अंशु बिखरते
माणिक, मोती, हीरक लगते।
मृग-शावक कुलाँचे भरता
गुंजन मधुप मंजरी भाता,
अनुपम सौंदर्य समेटे धरा
लोचन बसता, ह्रदय लुभाता।
1 जुलाई 2007
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