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अनुभूति में कवि कुलवंत सिंह की रचनाएँ-

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प्रकृति
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
प्रणय का गीत
वंदना

 

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र

अरब सिंधु तट शोभित,
ज्ञान प्रसार नित मुखरित,
परमाणु अनंत ज्ञान पूरित,
सृजन संसृति निरत प्रहसित।

गिरि पयोधि मध्य सुशोभित,
प्रकृति छटा सघन रंजित,
निखार कन-कन आच्छादित,
अभिराज दृश्य से उर पुलकित।

हिंद-मुकुट, ज्ञान-परचम,
लुप्त अज्ञान, मिटे भ्रम,
ज्ञान तीर्थ आलोक उदगम,
विश्व विख्यात स्थल श्रम।

शक्ति संचरित भारत सबल,
परमाणु शक्ति संपन्न प्रबल,
संपूर्ण देश गौरव सकल,
'भाभा', 'कलाम', 'विक्रम' कर्म स्थल।

केंद्र में 'अप्सरा' अवतरित,
विज्ञानी प्रेम-पाश से हर्षित,
गोल गुबंद 'साइरस' निर्मित,
परमाणु उर्जा प्रतीक सृजित।

'ध्रुव' से बनी निज पहचान,
भारत का गौरव अभिमान,
पोषित नाना अनुसंधान,
विश्व गाए स्तुति गान।

चिकित्सा क्षेत्र उपयोग महती,
विकिरण निदान उपचार करती,
प्रकृति के रहस्य समझाती,
मानव को नवजीवन देती।

नाना अन्न फसले विकसित,
खाद्यान्न, सब्ज, दाल किरणित,
'कृषक' सुविधा नासिक निर्मित,
जीवन सौंदर्य विज्ञान सिंचित।

अहो भाग्य! श्रम में जुटे,
प्रशस्ति पथ प्रतिपल डटे,
जन-जन विकास मार्ग जुटे,
आलोक पखर, अज्ञान मिटे।

मुकुट भाल युग युग रहे,
वसुधा गौरव तरणि रहे,
सश्रम नित निनाद रहे,
अर्पित पूजा कर्म रहे।

1 जुलाई 2007

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