अनुभूति में
कवि कुलवंत सिंह की रचनाएँ-
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छेड़ो तराने
प्रकृति
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
प्रणय का गीत
वंदना |
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छेड़ो तराने
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
सूने दिवस थे, सूने रैना,
सूने उर में गहन वेदना,
सूने पल थे, सूने नैना,
सूने गात में सुप्त चेतना।
अभिलाषाओं ने करवट ली,
करुणा से पलकें गीली।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
सुप्त भाव थे, सुप्त विराग,
मरू जीवन में सुप्त अनुराग,
तमस विषाद, रंचित रस राग,
नीरव व्यथा, था कैसा अभाग।
दिग दिगंत आह्लाद निनाद,
दिव्य ज्योति हलचल प्रमाद।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
मौन क्रंद था, मौन संताप,
मौन प्रमोद, राग आलाप,
मौन दग्ध दुख, मौन प्रलाप,
अंतस्थल में मौन ही व्याप।
आशा रंजित, मंगल संस़ृति,
हर्षित ह्रदय, झलक नवज्योति।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
तिमिर टूटा निद्रा पर्वत,
सकल वेदना का कर अंत,
पुलकित भाव घनघोर अनंत,
उन्मादित थिरकते पाँव बसंत।
स्मृतियाँ विस्मृत, सजल नयन,
अभिनव परिवर्तन झंकृत जीवन।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
1 जुलाई 2007
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