अनुभूति में
कुहेली भट्टाचार्य
की रचनाएँ
कविताओं में-
इंतज़ार में रहेगा सवेरा
एक बीज
घास के वक्ष से
तुम भी ठहरो
रोशनी होगी
वादा
सौंधी सुगंध
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वादा
तुमने कहा था तुम आओगे
कल सारी रात, मैंने
घर की सारी बत्तियाँ
जलाकर रखीं
वो रोशनदान जो
तुम्हारी पसंद का था
मोमबत्तियाँ से भरकर
उसे भी जलाकर रखा
उसकी रोशनी तुम्हें पसंद है।
सारी रात गली के पहरेदार की
जूतों की आवाज़, व्हिसल, लाठी की ठक-ठक
दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़
तुम्हारे टेपरिकार्डर में
एक मीठी-सी धुन बज रही थी
तलत महमूद की ग़ज़ल
तुम्हें पसंद थी।
मुझे पता है
आजकल तुम्हारी पसंद
बदल गई है
फिर भी मैं अतीत को ढो रही हूँ।
मोमबत्तियाँ पिघल रही थीं
रात भी ढल रही थी
पहरेदार की व्हिसल बंद हो गई
धड़कन तेज़ हो रही थी
फिर भी कहीं आशा थी
शायद. . .
मैंने एक-एक करके सारी बत्तियाँ बुझा दीं
अब घर में अँधेरा है
सारे पर्दे खिड़कियों को
ढक कर रखा है
बाहर शायद भोर हो गई है।
9
मई
2007
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