अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कुहेली भट्टाचार्य की रचनाएँ

कविताओं में-
इंतज़ार में रहेगा सवेरा
एक बीज
घास के वक्ष से
तुम भी ठहरो

रोशनी होगी
वादा
सौंधी सुगंध

 

तुम भी ठहरो

मेरी सुवह भी गीली थी
कल रात की तरह
मौसम में एक सूनापन है
सीने की गहराई में एक
मीठी-सी चुभन
दिल के उस कोने में
गहराई और ढलान है
याद एक ठहरी हुई है
कहता है मुझे
तुम भी ठहर जाओ
दो पल वो गीलापन
खंजर की तरह दागी एक
याद. . .
महकती है पहले चुंबन की तरह।
या वो स्पर्श जो यादों से उतरकर अगर
पक्षी की तरह हल्का
मन के ऊपर से बह जाए
धड़कन तेज़ होने लगती है।
हल्के हाथों से सूखे कपड़ों को
हटाते-हटाते बादल का रुख
समझने की कोशिश में
वो खंजर हिल जाता है थोड़ा-सा
दर्द ताज़ा होकर
सीने से रक्त टपकता रहता है
और रातें भी भीग जाती हैं।

9 मई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter