अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कुहेली भट्टाचार्य की रचनाएँ

कविताओं में-
इंतज़ार में रहेगा सवेरा
एक बीज
घास के वक्ष से
तुम भी ठहरो

रोशनी होगी
वादा
सौंधी सुगंध

 

घास के वक्ष से

ज़मीन से आसमान तक
फैली थी एक किरण
छोटी-छोटी घास के वक्ष से
निकल रही यह किरण और छटा।
किंचित अवहेलित
जंगली फूलों ने जब
अपने आँसू बोये
तभी से रची है
यह हरित छाया
यह रंगों की बहार।
पता नहीं कैसे फैल गई
यह ज़मीन से आसमान तक।
मुट्ठी भर उजाला
बन गया इंद्रधनुष
पल्लवों-कलियों में छा गया
बनकर बसंत
के शोर हृदय का उल्लास पाकर
साकार हो गया धरती का सपना।
प्रेम-धुन गूँज रही है
ऊर्ध्व गगन में
उर्मिल हो उठा है नदी का आँचल
किशोरी के मन की पायल झनकी
किरण फैलती चली गई
भोर की सुगंध के साथ-साथ
अब रात का आँगन भी
सज गया है सितारों से!

9 brमई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter