अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कविता वाचक्नवी की रचनाएँ-

नई कविताएँ-
कीकर
जल
तुम्हारे वरद हस्
परिताप
भूकंप
मा
मैं कुछ नहीं भूली
मैंने दीवारों से पूछा
रक्त नीला
सूर्य नमस्कार

मुक्तक में
घरः दस भावचित्र

 

कीकर

बीनती हूँ
कंकरी
औ’ बीनती हूँ
झाड़ियाँ बस
नाम ले तूफान का
तुम यह समझते

थी कँटीली शाख
मेरे हाथ में जब ,
एक तीखी
नोक
उँगली में
गड़ी थी ,
चुहचुहाती
बूँद कोई
फिसलती थी
पोर पर
तब
होंठ धर
तुम पी गए थे ।

कोई आश्वासन
नहीं था
प्रेम भी
वह
क्या रहा होगा
नहीं मैं जानती हूँ
था भला
मन को लगा
बस !
और कुछ भी
क्या कहूँ मैं ?
फिर
न जाने कब
चुभन औ’ घाव खाई
सुगबुगाती

काँपती
वे दो हथेली
खोल मैंने
सामने कीं
" चूम लो
अच्छा लगेगा "
तुम चूम बैठे
घाव थे
सब अनदिखे वे
खोल कर
जो
सामने
मैंने किए थे
और तेरे
चुंबनों से
तृप्त
सकुचाती हथेली
भींच ली थीं।

क्या पता था
एक दिन
तुम भी कहोगे
अनदिखे सब घाव
झूठी गाथ हैं
औ’
कंटकों को बीनने की
वृत्ति लेकर
दोषती
तूफान को हूँ।

आज
आ - रोपित किया है
पेड़ कीकर का
मेरे मन मरुस्थल में
जब तुम्हीं ने ,
क्या भला -
अब चूम
चुभती लाल बूँदें
हर सकोगे
पोर की पीड़ा हमारी?

16 नवंबर 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter