अनुभूति में
कविता वाचक्नवी
की रचनाएँ-
नई कविताएँ-
कीकर
जल
तुम्हारे वरद हस्त
परिताप
भूकंप
माँ
मैं कुछ नहीं भूली
मैंने दीवारों से पूछा
रक्त नीला
सूर्य नमस्कार
मुक्तक में
घरः दस भावचित्र
|
|
भूकंप
मेरे हृदय की कोमलता को
अपने क्रूर हाथों से
बेध कर
ऊँची अट्टालिकाओं का निर्माण किया
उखाड़ कर प्राणवाही पेड़ - पौधे
बो दिए धुआँ उगलते कल - कारखाने
उत्पादन के सामान सजाए
मेरे पोर - पोर को बींध कर
स्तंभ गाड़े
विद्युतवाही तारों के
जलवाही धारों को बाँध दिया।
तुम्हारी कुदालों, खुरपियों, फावड़ों,
मशीनों, आरियों, बुलडोजरों से
कँपती थरथराती रही मैं ।
तुम्हारे घरों की नींव
मेरी बाहों पर थी
अपने घर के मान में
सरो - सामान में
भूल गए तुम ।
मैं थोड़ा हिली
तो लो
भरभरा कर गिर गए
तुम्हारे घर ।
फटा तो हृदय
मेरा ही ।
16 नवंबर 2007 |