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अनुभूति में कश्मीर सिंह की रचनाएँ-

गीतों में-
तुम तब भी आ जाना
तुम नहीं आए

छंदमुक्त में-
आदमी
तुम और मैं

बेटियाँ चार छोटी कविताएँ
माँ

  तुम तब भी आ जाना

देखो तुम तब भी आ जाना
साथी तुम तब भी आ जाना

स्वयं हिमालय पथ रोके जब,
नदियाँ रूप धरें विकराल
डगमग-डगमग धरती डोले,
आये कोटि भीषण भूचाल
हो जाए प्रतिकूल सभी कुछ,
किंचित विचलित तुम हो जाना।
साथी तुम तब भी आ जाना,
देखो तुम तब भी आ जाना

बन्द हुए हों द्वार सभी जब
अंधियारा जग में छा जाए
कोई टीस भयावह बनकर
मन के दीप बुझाने आए
झंझावातों में घिर जाओ,
मन का मीत नहीं बिसराना
साथी तुम तब भी आ जाना
देखो तुम तब भी आ जाना

चलते-चलते कदम रुकें जब
पथ तमको कुछ याद दिलाए
दिवा स्वप्न से पड़ें दिखाई
प्यासा व्याकुल मन घबराए
तुम को तनिक नहीं भाएगा
लौट पिया के गाम को आना
साथी तुम तब भी आ जाना
देखो तुम तब भी आ जाना

सुधियों के उस पार पहुँच जब
तुम शायद सब कुछ पा जाओ
प्रियतम से मिलने को आतुर
नील गगन में उड़ना चाहो
आँख मिचौली करें प्राण जब
अन्त: मन को तुम सहलाना
साथी तुम तब भी आ जाना
देखो तुम फिर भी आ जाना

१ फरवरी २०१०

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