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अनुभूति में कश्मीर सिंह की रचनाएँ-

गीतों में-
तुम तब भी आ जाना
तुम नहीं आए

छंदमुक्त में-
आदमी
तुम और मैं

बेटियाँ चार छोटी कविताएँ
माँ

  तुम और मैं

किसी बन्धन में नहीं बँधे,
जाने क्यूँ लगता है?
फिर भी
कि बँधे हुए हैं,
मैं और तुम।
जब भी कोई युगल
बँधा प्रेम-पाश में
गुजरता पास से
मन होता उद्वेलित
देखकर तेरा रूप,
उस नवयौवना में
लगता, तुम्ही तो थी।
जाने क्यों लगता है?
कि मिला हूँ तुमसे,
पहले भी यहीं-कहीं,
शायद पूर्व जन्म में,
अपनाया हो मुझे तुमने,
यह कह कर कि 'तुम मेरे हो'।
जाने क्यों लगता है?
तुम हो वही 'वीणा'
जिसके तार-तार से
झंकृत थे मेरे प्राण,
मेरा राग,
अनुराग,
सभी कुछ तो थी तुम।
क्यों लगता है मुझे?
आ गई हो, मेरे आँगन में,
छा गई हो, मेरी कामनाओं में,
तुम, बनकर

१ फरवरी २०१०

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