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अनुभूति में कमलेश यादव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अब मैं मन का करती हूँ
कुछ नहीं बदलेगा
कुछ बचा है हमारे बीच
चलो फिर एक बार

निर्णय

 

कुछ नहीं बदलेगा

कुछ नहीं बदलेगा
सबकुछ वैसा ही रहेगा
सुबह होगी,
वही शाम होगी
वही बगिया, वही आँगन होगा
पक्षियों का
कलरव गान होगा
वही भीड़, वही भागमभाग होगी
एक चिड़िया कहीं चली जाएगी
एक दिन
बिना बताये अचानक ही
फिर ना लौटेगी घोंसले की ओर
चुपचाप
चली जाएगी अपने अंत की ओर
और
एक नया तारा आकाश में होगा
फिर हरियाली होगी, वही मौसम होगा
कुछ नहीं बदलेगा
सबकुछ वैसा ही रहेगा

१ अप्रैल २०१७

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