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अनुभूति में कमलेश यादव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अब मैं मन का करती हूँ
कुछ नहीं बदलेगा
कुछ बचा है हमारे बीच
चलो फिर एक बार

निर्णय

 

चलो फिर एक बार

चलो
फिर एक बार
बीते कल को जीते हैं
कुछ बोलते
बतियाते हैं
फिर कुछ सपने देखते हैं
गुज़र चुके क़िस्सों को
दोहराते हैं
फिर कुछ प्रेम गीत गाते हैं
पुरानी किताबों से
चंद शब्द चुराते हैं
फिर कुछ ग़ज़ल सुनाते हैं
सितारों के मेले में
अपनों को ढूँढते हैं
फिर कुछ रूठते मनाते हैं
पास बैठ कर
कल्पनाओं की चिड़ियाँ उड़ाते हैं
फिर कुछ हक़ीक़त को
झुठलाते हैं
फिर बारिश में
कागज़ की नाव चलाते हैं
फिर कुछ हँसते मुस्कुराते हैं
आज आँखों को बह जाने देते हैं
फिर इसी पानी में
डूब जाते हैं

१ अप्रैल २०१७

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