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अनुभूति में कमलेश यादव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अब मैं मन का करती हूँ
कुछ नहीं बदलेगा
कुछ बचा है हमारे बीच
चलो फिर एक बार

निर्णय

 

कुछ बचा है हमारे बीच

सबकुछ ख़त्म नहीं हो गया है
कुछ न कुछ बचा है हमारे बीच
बचे हैं थोड़े से गीत
जिन्हें यों ही हम गुनगुनाएँगे
उम्रभर
बचा है थोड़ा सा प्रेम
जिसे सिरहाने रख हम काटेंगे
अपनी रातें
बची है ज़रा सी प्रार्थना
जो हमारे न होने पर भी होगी
तारों की तरह
नहीं, सब कुछ ख़त्म नहीं हो गया है
अभी, कुछ न कुछ बचा है
हमारे बीच।

१ अप्रैल २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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