अनुभूति में
कमलेश यादव
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अब मैं मन का करती हूँ
कुछ नहीं बदलेगा
कुछ बचा है हमारे बीच
चलो फिर एक बार
निर्णय |
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अब मैं मन का करती
हूँ
पास बैठ कर नदी में
खुद को देखती हूँ
कभी खुले आसमान में
तारों को गिनतीं हूँ
आँगन में बैठ
पक्षियों का कलराव सुनती हूँ
कभी चुपचाप
अकेले, यों ही गुनगुनाती हूँ
हाँ मैं ख़ुद को,
ख़ुद से ही तराशती हूँ
कल के सबक से, आज को सँवारती हूँ
सब कहते हैं,
मैं कुछ नहीं करती हूँ
हाँ, क्योंकि अब मैं मन का करती हूँ
१ अप्रैल २०१७ |