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अनुभूति में ज्योत्स्ना मिलन की रचनाएँ

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चार छोटी कविताएँ- भीतर तक, पीछे, होने का शब्द, सह्याद्रि के पहाड़ों में
तितली का मन
दरवाज़ा
पीठ
रात
लगातार
 



 

 

रात

सबसे पहले
शुरू होता है माँ का दिन
मुँह अंधेरे
और सबके बाद तक
चलता है
छोटी होती हैं
माँ की रातें नियम से
और दिन
नियम से लंबे
रात में दूर तक धँसे हुए

इसे कोई भी
दिन की घुसपैठ नहीं मानता
माँ की रात में

पैर सिकोड़कर
रोज़ सोती है
गुड़ी-मुड़ी माँ
बची-खुची रात में

पैर फैलाने लायक
लंबी भी नहीं होती
माँ की रात!

१४ जनवरी २००८

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