कविताओं में— अवाक औरत करवट कल चार छोटी कविताएँ- भीतर तक, पीछे, होने का शब्द, सह्याद्रि के पहाड़ों में तितली का मन दरवाज़ा पीठ रात लगातार
लगातार
एकाएक अपने पैरों को देखा तो भर उठी दहशत से बरसों पहले जहाँ गाड़ा गया था वहीं खड़ी थी मैं जिसका जो मन आया टाँगता चला गया थैला, टोपी, अंगोछा या अपनी थकान और लगता रहा सारे वक्त कि मैं चलती रही हूँ लगातार।
१४ जनवरी २००८
इस रचना पर अपने विचार लिखें दूसरों के विचार पढ़ें
अंजुमन। उपहार। काव्य चर्चा। काव्य संगम। किशोर कोना। गौरव ग्राम। गौरवग्रंथ। दोहे। रचनाएँ भेजें नई हवा। पाठकनामा। पुराने अंक। संकलन। हाइकु। हास्य व्यंग्य। क्षणिकाएँ। दिशांतर। समस्यापूर्ति
© सर्वाधिकार सुरक्षित अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है