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अनुभूति में ज्योत्स्ना मिलन की रचनाएँ

कविताओं में
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कल
चार छोटी कविताएँ- भीतर तक, पीछे, होने का शब्द, सह्याद्रि के पहाड़ों में
तितली का मन
दरवाज़ा
पीठ
रात
लगातार
 

 

कल

कल, कल होगा
रोका नहीं जा सकता कल को
होने से
कुछ भी हो सकता है कल को
हो सकता है चलने-फिरने लगें
पेड़-पौधे-मकान
हो सकता है चलते-चलते
खड़े के खड़े रह जाएँ हम
अपनी-अपनी जगह
उड़ने लगें खेत-नदियाँ और पहाड़
फूट निकलें कोंपलें हवा में
हो सकता है कल को
अलोप हो जाए पूरी दुनिया
दिखने लग जाएँ कल से
मृत्यु-आत्मा और ईश्वर
संभव है कल को
भूल जाएँ हमें
अपनी भाषा
समझ न आए बात
किसी को
किसी की।

१४ जनवरी २००८

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